दीपावली
दीपावली का नाम सुनते ही हमारे मन चारो तरफ रोशनी का एहसास होने लगता है दिपावली का अर्थ है दीपो की पंक्ति। दीपावली शब्द ‘दीप’ एवं ‘आवली’ दो शब्दों की संधिसे बना है। आवली अर्थात पंक्ति, इस प्रकार दीपावली शब्द का अर्थ है, दीपोंकी पंक्ति । भारतवर्षमें मनाए जानेवाले सभी त्यौहारों में दीपावलीका सामाजिक ,धार्मिक एवम आध्यात्मिक तीनों दृष्टि से अत्यधिक महत्त्व है। इसको रोशनी का उत्सव भी कहते हैं ‘तमसो मा ज्योतिर्गमय’ अर्थात् ‘अंधेरे से प्रकाश की ओर ले चलो ’ यह उपनिषदोंकी आज्ञा है।
दीपावली के दिन अयोध्या के राजा श्री राम चन्द्र अपने चौदह वर्ष के वनवास के पश्चात लौटे थे। अयोध्यावासियों का ह्रदय अपने परम प्रिय राजा के आगमन से उल्लसित था। श्री राम के स्वागत में अयोध्यावासियों ने घी के दीए जलाए थे। कार्तिक मास की काली अमावस्या की वह रात्रि दीपकों की रोशनी से प्रकाशित हो उठी। तब से आज तक भारत मे प्रति वर्ष यह प्रकाश-पर्व बडे हर्ष व उल्लास से मनाया जाता है। झूठ का नाश होता है। दीवाली यही चरितार्थ करती है- असतो माऽ सद्गमय , तमसो माऽ ज्योतिर्गमय। दीपावली स्वच्छता व प्रकाश का पर्व है। कई सप्ताह पूर्व ही दीपावली की तैयारियाँ आरंभ हो जाती है। लोग अपने घरों, दुकानों आदि की सफाई का कार्य आरंभ कर देते हैं। घरों में रंग-रोगन,सफ़ेदी आदि का कार्य होने लगता हैं। लोग दुकानों को भी साफ़ सुथरा का सजाते हैं।सारा क सारा कचरा , गन्दगी बाहर निकाल देते है बाज़ारों को, गलियों को झंडियों से सजाया जाता है। दीपावली से पहले ही घर-मोहल्ले, बाज़ार सब साफ-सुथरे नये नये नज़र आते हैं। अंधकार पर प्रकाश की विजय का यह पर्व समाज में प्रेम का संदेश फैलाता है।
दीप जलाने की परन्परा के पीछे अलग-अलग कहानियाँ हैं। कुछ लोगों के अनुसार दीवाली वाले दिन अयोध्या के राजा राम लंका के अत्याचारी राजा रावण का वध करके अयोध्या लौटे थे। उनके लौटने कि खुशी मे लोगों ने यह पर्व मनाया था। कुछ लोगों का मत है कि इस दिन भगवान श्री कृष्ण ने अत्याचारी राजा नरकासुर का वध किया था। इस नृशंस राक्षस के वध से जनता में अपार हर्ष फैल गया और प्रसन्नता से भरे लोगों ने घी के दीए जलाए। एक दुसरी ही पौराणिक कथा के अनुसार विंष्णु ने नरसिंह रुप धारणकर हिरण्यकश्यप का वध किया था तथा इसी दिन समुद्रमंथन के पश्चात लक्ष्मी व धन्वंतरि प्रकट हुए। पंजाब में जन्मे स्वामी रामतीर्थ का जन्म व महाप्रयाण दोनों दीपावली के दिन ही हुआ। इन्होंने दीपावली के दिन गंगातट पर स्नान करते समय 'ओम' कहते हुए समाधि ले ली।
पर्वों का पुन्ज दीपावली
दीपावली के दिन भारत में विभिन्न स्थानों पर मेले लगते हैं।दीपावली एक दिन का पर्व नहीं अपितु पर्वों का समूह है। दशहरे के पश्चात ही दीपावली की तैयारियाँ आरंभ हो जाती है। लोग नए-नए वस्त्र सिलवाते हैं। दीपावली से दो दिन पूर्व धनतेरस का त्योहार आता है। इस दिन बाज़ारों में चारों तरफ़ जनसमूह उमड़ पड़ता है। इस दिन घरों में सुबह से ही तरह-तरह के पकवान बनाए जाते हैं। बाज़ारों में खील-बताशे , मिठाइयाँ ,खांड़ के खिलौने, लक्ष्मी-गणेश आदि की मूर्तियाँ बिकने लगती हैं । इस तरह एक तरफ तो खुशी का माहौल होता है वही दुसरी तरफ किसी पडौस के गरीब घर मे दिया जलाने के लिये भी पैसे नही होते है कैसी होती होगी उनकी दिवालि? उनके बच्चो के पास नये कपडे नही होते मिठाई तो दूर की बात होती है. हमारे ह्र्दय की असली दिवाली तो तब मनेगी जब हम अपने बच्चो के साथ साथ अपने पडौस के गरीब के बच्चो को भी कुच्छ मिठाई दे, कुछ कपडे दे . तब हमारा अन्तर्यामी देवता हमसे अधिक प्रसन्न होगा और हमारी असली दिवाली होगी.
अंधकार पर प्रकाश की विजय का यह पर्व समाज में उल्लास, भाई-चारे व प्रेम का संदेश फैलाता है। यह पर्व सामूहिक व व्यक्तिगत दोनों तरह से मनाए जाने वाला ऐसा विशिष्ट पर्व है जो धार्मिक, सांस्कृतिक व सामाजिक विशिष्टता रखता है।
इस दिन लक्ष्मी पूजन. वही खाते आदि का पूजन का वडा ही महत्व है मैं नीचे पूजन की विधि दे रहा हू इससे सभी लाभ उठाये. लक्ष्मी पूजन का समय भी एक अत्यन्त महत्व्पूर्ण पहलू है नीचे अलग अलग समय के लक्ष्मी पूजन के समय दिये जा रहे है अपनी अपनी सुबिधा अनुसार लक्ष्मी पूजन करके पुन्य के भागी बनें
इस वर्ष ५ नब्म्बर २०१० कार्तिक कृष्ण १४ शुक्रवार मे महालक्ष्मी पूजन मान्य रहेगा क्योकि इस दिन अमावस्या दिन मे १३ बजकर १ मिनट से शुरू हो जायेगी अतः प्रदोष के समय अमावस्या मे लक्ष्मी पूजन की मान्यता सर्वोपरि है इसके अलावा दिन भर मे बिभिन्न लग्नो मे लक्ष्मी पूजन का समय नीची दिया जा रह है
धनु लग्न सुबह ९/४७ से ११/५२ तक रहेगी इसमे चर लाभ अमृत के तीन चौघडिया महूर्त व्यापारियो के लिये शुभ रहेगे,
१०/४४ से १२/५ के मध्य काल चौघडिया महूर्त लोहा, चमडा, तथा वाहन से जुडे व्यापारिओ के लेये उत्तम रहेगा.
मेरे मतानुसार १०/३० से १२/०० के समय मे राहु काल होने से त्यागना ही श्रेष्यकर रहेगा.
दिन मे ११/५० से १५.२ तक मकर और कुम्भ दो लग्न भोग करेगीं लग्नेश की स्थिति भाग्य मे होने से इस समय मे पूजा परने वालो के लिय विकास को बल मिलेगा,
११/४१ से १२/२८ तक अभिजित महुरत रहेगा जिसकी महत्ता तो सभी जानते है
साय १७/३० से १९/५४ बजे तक प्रदोष काल रहेगा जो कि लक्ष्मी पूजन क लिये सर्व श्रेष्ठ कहा जाता है इस वर्ष शुक्र अस्त होने से वृष लग्न कम्जोर मानी जायेगी जो कि परन्तु प्रदोष काल साथ मे होने से शुक्र के अस्त का दोष कम हो जाता है
दीपावली की रात्री मे कर्क लग्न २२/१२ से शुरू होकर जो कि निशीथ काल तक रहेगी महानिशीथ काल २३/४० से २४/३३ बजे के मध्य होगा जिसे धन की देवी लक्ष्मी के पूजन के लिये शुभ कहा गया है
अतः अपने अपने सुबिधा अनुसार उपर्युक्त समय मे से किसी भी समय मे लक्ष्मी जी का पूजन किया जा सकता है
लक्ष्मी पूजन:बिधि
कार्तिक कृष्ण अमावस्या के दिन (इस वर्ष दिनांक ५ नवम्बर २०१०) को प्रातः स्नानदि और नित्य कर्म से निवृत्त होकर ’मम सर्वाच्छान्तिपूर्वकदीर्घायुष्यबलपुष्टिनैरुज्यादिसकलशुभफलप्राप्त्यर्थं राज्यैश्र्वर्यादिसकलसम्पदामुत्तरोत्तराभिवृध्द्यर्थम इन्द्रकुबेर सहित श्री लक्ष्मीपूजनं करिष्ये’ यह संकल्प करके दिन भर व्रत रखे और सायं काल के समय पुनः स्नान करके पूर्वोक्त प्रकार की दीपमालिका बना कर खजाने में या किसी शुध्द सुन्दर सुशोभित और शान्ति बर्धक स्थान मे बेदी बना कर या चौकी-पाटे पर अक्षतादि से अष्टदल कमल बनाये और उस पर लक्ष्मी गणेश का स्थापन करके ॐ लक्ष्मीगणेशाभ्याम नमः, इन्द्राय नमः और कुबेराय नमः इन तीन नामों से तीनो का अलग अलग या एकत्र यथाबिधि पंचोपचार या षोडशोपचार से पूजन करके नमस्ते सर्वदेवानां वरदासि हरेः प्रिया या गतिस्त्वप्रपन्नानां सा मे भूयात्वदर्चनात. से लक्ष्मी की ऐरावतसमारूढो वज्रहस्तो महावल: शतयग्यधिपो देवस्तस्मा इन्द्राय ते नमः से इन्द्र की तथा धनदाय नमस्तुभ्यं निधिपद्माधिपाय च. भवन्तु त्वत्प्रसादान्मे धनधान्यादिसम्पदःसे कुबेर की प्रार्थना करके पुष्पांजलि अर्पण करके आरती करे. अनेक प्रकार की उत्तम मिठाई फल, पुष्प अर्पण करने चाहिये, इससे लक्ष्मी माता अवश्य प्रसन्न होती है तथा अपने भक्तो को अभीष्ट वर प्रदान करती हैं