कर्म की गति
Hari Omm!!!
खबरदार......!
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कर्म की गति
अवश्यमेव भोक्तव्यं कृतं कर्म शुभाशुभम्।
नाभुक्तं क्षीयते कर्म कल्पकोटिशतैरपि।।
"अपना किया हुआ जो भी कुछ शुभ-अशुभ कर्म है, वह अवश्य ही भोगना पड़ता है।
बिना भोगे तो सैंकड़ों-करोड़ों कल्पों के गुजरने पर भी कर्म नहीं टल
सकता।"
इतिहास में ऐसी कई घटनाएँ हैं जो इस बात का प्रमाण है। अनादि काल से यह
सिद्धान्त सत्य की कसौटी पर खरा उतरता आया है।
'कल्याण' पत्रिका में एक ऐसी ही सत्य घटना छपी थी, जिसमें दत्ता दिगम्बर
कुलकर्णी नामक एक सज्जन ने अपना अनुभव इस प्रकार बताया थाः
''11जुलाई 1962 को मैं बम्बई मद्रास मेल से पँढरपुर जा रहा था। रेलगाड़ी
कुर्डूवाड़ी स्टेशन से निकल चुकी थी। कुर्डूवाडी के समीप रहने वाले कुछ
भक्त यात्री रेलवे लाईन की बगल से जाने वाले छोटे से पैदल मार्ग से जा
रहे थे। मेरे डिब्बे में तीन फौजी युवक थे। उनमें से एक डिब्बे का दरवाजा
खोले खड़ा था और बगल के पैदल रास्ते से जाने वाले यात्रियों को पैर बाहर
निकाल कर मार-मारकर हँस रहा था। हम लोगों ने उसे बहुत समझाया कि 'ये सब
पंढरपुर की यात्रा को जा रहे हैं, निर्दोष हैं, इन्हें लात मारना ठीक
नहीं है। तुम इन निरपराध नर-नारियों को क्यों ठोकर मार रहे हो ?' पर उसने
किसी की बात नहीं सुनी। एक किसान स्त्री सिर पर टोकरी और टोकरी से बच्चे
को लिए उसी रास्ते से जा रही थी। इसने देखते ही उसको लात मारी। लात लगते
ही वह बेचारी गिर पड़ी और उसी के साथ टोकरी था टोकरी का बच्चा भी नीचे
गिर पड़ा। यह प्रसंग हमने आँखों से देखा, हमें बड़ा दुःख हुआ।
गाड़ी बड़ी तेजी से जा रही थी। थोड़ी ही देर में इंजन में पानी भरने वाली
सूँड का खम्भा आ गया। युवक पैर बाहर निकाले हुए था। उसके पैर में खम्भे
से अकस्मात बड़े जोर की चोट लगी और वह नीचे रेलवे लाइन पर गिर पड़ा।
गिरते ही उसकी टाँग के दो टुकड़े हो गये। वह भयानक दृश्य हमने देखा। वह
समझाने पर मान गया होता तो वह कुदरती कहर क्यों होता ! हमें बड़ा आश्चर्य
हुआ कि पापकर्म का फल कुछ ही क्षणों में कैसे मिल गया ! कहावत तो यह चलती
है कि 'भगवान के घर देर है, अँधेर नहीं' लेकिन कभी-कभी ऐसे तीव्र पाप
कर्म दिखा देते हैं कि अँधेर भी नहीं देर भी नहीं ! मनुष्य यह सब देखकर
कुछ नहीं सीखता, यही दुःख की बात है।"
पूज्य बापूजी कहते हैं - ''किये हुए शुभ या अशुभ कर्म कई जन्मों तक
मनुष्य का पीछा नहीं छोड़ते।'
गहना कर्मणो गतिः।
'कर्मों की गति बड़ी गहन होती है।'
जो कर्म स्वयं को और दूसरों को भी सुख शांति दें तथा देर सवेर भगवान तक
पहुँचा दें, वे शुभ कर्म हैं और जो क्षण भर के लिए ही (अस्थायी) सुख दें
और भविष्य में अपने को तथा दूसरों को भगवान से दूर कर दें, कष्ट दें,
नरकों में पहुँचा दें, उन्हें अशुभ कर्म कहते हैं।"
अशुभ कर्मों से बचकर शुभ कर्म करें और कर्म करने की सत्ता जहाँ से आती है
उस सर्वेश्वर, परमेश्वर में विश्रान्ति पायें, इसी में जीवन की सार्थकता
है।