श्री कृष्ण जन्माष्टमी
>> Thursday, August 26, 2010 –
व्रतत्यौहार
श्री कृष्ण जन्माष्टमी
लेखक-अचार्य राम हरी शर्मा
”यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत.
अभ्युथानमधर्मस्य तदात्मानम सृजाम्यहम.
परित्राणाय साधूनाम विनाशाय च दुष्कृताम
धर्म संस्थापनार्थाय संभवामि युगे युगे.
श्री मद्भागवत के चौथे अध्याय का सातवां और आठवां श्लोक महाभारत सीरियल के बाद प्रत्येक भारतीय की जुबान पर रहता है इस श्लोक में भगवान श्री कृष्ण ने अपने मुखारबिन्द से कहा है कि हे भरतवन्शी अर्जुन ” जब जब धर्म की हानि और अधर्म की वृद्धि होती है तव तव ही मैं अपने साकार रूप से लोगों के सम्मुख प्रकट होता हूँ . भक्तो की रक्षा करने लिये और पापिओं का विनाश करने के लिये और धर्म की फिर स्थापना के लिये में युग युग में प्रकट हुआ करता हूँ.
जब जब समाज मे तनाव खिचाव ्विषय भोग, खिचाव जीव को अपनी तरफ आकृष्ट करते है और जीव अपना वास्तविक स्वरूप भूल कर अपनी असली पहचान से गिर जाता है उसी समय जीव को ऊँचा उठाने के लिये , उसे उसकी वास्तविक स्थिति मे स्थित करने के लिये श्री कृष्ण का अवतार होता है यह उत्सव भाद्र पद शुक्ल पक्ष की अष्टमी को मनाया जाता है (इस वर्ष ०१ सितम्बर को ) मथुरा मे श्री कृष्ण जन्मस्थान पर देश विदेश से पर्यटक आकर इस उत्सव मे शामिल होकर अपने को धन्य मानते है आकाश वाणी एवम दूरदर्शन से इस उत्सव का सीधा प्रसारण किया जाता है जिसे पूरे विश्व मे देखा जा सकता है पूरे ब्रज क्षेत्र मे इस दिन एक अद्भुत वातावरण देखने को मिलता है सुबह से ही सभी ब्रज बासी बिभिन्न रंगीली पोशाको में सज धज कर श्री कृष्ण की बाल लीलाये करते है जिन्हे देख कर वर वस द्वापर युग की याद हो आती है धन्य है वे ब्रज बासी जिन्होने भगवान श्री कृष्ण की इस मधुर भूमि पर जन्म लिया तभी तो कवि रस खान गा उठते है
” मानुष हों तो वही रसखान बसों ब्रज गोकुल गांव के ग्वारन”.........
तथा इसी क्रम मे सूरदास भी अपने पदो मे श्री कृष्ण की लीलाओ का सजीव चित्रंण करते है यथा
मैय्या मेरी मै नहि माखन खायौ
ज्योतिषीय महत्व
लगभग सभी पुराणों ( शिव, विष्णू, ब्रह्म, भविष्यादि) में जन्माष्टमी व्रत का उल्लेख किया है भगवान श्री कृष्ण का जन्म भाद्र्पद अषटमी को बुधवार के दिन रात्रि मे १२ बजे रोहिणी नक्षत्र मे वृष के चन्द्रमा मे हुआ था अतः सभी सधक अपने आपने अभीष्ट योग का ग्रहण करते है शास्त्रों मे शुद्धा और विद्धा भेद से नवमी के १८ भेद बनते है परन्तु सिधांत रूप से तत्कालीन व्यापिनी ( अर्ध रात्री में रहने वाली तिथी) अधिक मान्य होती है . यदि वह दो दिन हो तो या दोनो ही दिन न हो तो सप्तमी विद्धा को छोड कर नवमी बिद्धा को ग्रहण करना चाहिये. विद्धा का अर्थ है युक्त अर्थात दूसरी तिथी से युक्त.
इस दिन सभी वाल , कुमार , युवा और बृद्ध सभी आयु वाले मनुष्य स्त्रीयों को व्रत करना चाहिये. इससे उनके पापो का नाश होता है तथा सुखों की बृद्धि होती है इसमे अष्टमी के दिन उपवास से पूजन करके नवमी के दिन पारणा करने से ब्रत की पूर्ती होती है व्रत से पहले दिन अर्थात सप्तमी के दिन हल्का आहार ले . बृह्मचर्य व्रत का पालन करे उपवास के दिन प्रातः स्नानादि करके सूर्य, सोम , काल , आकाश आदि देवो का नमस्कार करे फिर पूर्व या उत्तर मुख बैठे और हाथ मे फूल लेकर यह सकल्प करे ”ममाखिलपापप्रशमनपूर्वक सर्वाभीष्टसिद्धये श्री कृष्ण जन्माष्टमी ब्रतमहं करिष्ये” दोपहर को काले तिल के जल से स्नान करे और देवकी जी के लिये सूतिका ग्रह नियत करके सूतिका ग्रह को अछी तरह से सजा करके उसमे एक पय पान कराती हुई देवकी और श्री कृष्ण का चित्र स्थापित करे फिर रात्री को १२ बजे षोडशो उपचार से पूजन करके पूजन मे देवकी नन्द यशोदा बल्देव वासुदेव और लक्ष्मी का नाम निर्दिष्ट करे तथा श्री कृष्ण भगवान को पुष्प अन्जलि अर्पित करे उसके बाद जात कर्म नालच्छेदन, षष्टी पूजन और नामकरणादि करके चन्द्रमा का पूजन करे और चन्द्रमा को अर्घ्य दे रात्रि का शेष भाग स्त्रोत्र आदि का पाठ करते हुये व्यतीत करे . सुबह होने पर जिस तिथी या नक्षत्र के योग मे व्रत किया हो उसका अन्त होने पर पारणा करे यदि तिथि या नक्षत्र का अन्त मे बिलम्ब हो तो जल पीकर पारणा की पूर्ती करे इस प्रकार यह व्रत करने से स्त्री पुरुषों की सभी अभिलाशाये पूर्ण होती है.
भारत वर्ष मे श्री कृष्ण जन्माष्टमी का बडा ही महत्व है क्योकि यह पूर्ण आप्त काम, पूर्ण पुरुष का अवतार दिवस है श्री कृष्ण का जब जब अवतार होता है तब पूरी मान्यताओं को छिन्न भिन्न करने के लिये होता है जब श्री कृष्ण का अवतरण हुआ तब समाज मे भौतिकवाद फैला हुआ था सभी तरफ लोग केवल जड शरीर के पालने पोसने मे ही लगे थे धन वालों का बोलवाला था जैसा कि आज कल हो रहा है,
कहते है कि मथुरा का राजा कंस अपनी बहन को ससुराल पहुचाने जारहा था तभी आकाशवाणी हुई कि तू जिस देवकी को इतने प्यार के साथ बिदा करने जा रहा है उसी के आठवे पु्त्र द्वारा तू मारा जायेगा. अभिमानी व्यक्ति हमेशा भय भीत होता है और मृत्यु से डरता है इसी डर से कंस ने पहले तो देवकी को मारने का उपक्रम किया परन्तु वसुदेव के आस्वासन देने पर उन दोनो को कारा गार मे डाल दिया गया और एक एक करके उनके ६ पुत्रो की हत्या कर दी . तब परमात्मा रूपी श्री कृष्ण का जेल मे अवतार हुआ कैसा अलौकिक जन्म है माता पिता जेल मे बन्द है चारों ओर विपत्तिओ के बादल मडरा रहे है और उन बिपत्तियो के बीच श्री कृष्ण मुस्कराते हुये मानो यह संदेश दे रहे है कि तुम भले ही चारो तरफ बिपत्तियो से घिरे हुये हो परन्तु तुम्हारा वास्तविक रूप एसा है जिस पर बिपत्ति का कोई असर नही होता है जेल के फा्टक खुल जाते है पहरे दार सो जाते है यमुना की बाढ उतर जाती है हम इन ्सबको भले ही चमत्कार माने परन्तु जो अपनी महिमा मे जगा है उनके संकल्प मे अद्भुत सामर्थ्य होता है क्योकि श्री कृष्ण अपनी महिमा मे जगे हुये पूर्ण पुरुष थे.
यह बडा ही रह्स्य भरा महोत्सव है समाज के प्रत्येक व्यक्ति का ध्यान रखते हुये , उसकी उन्नति के तरीकों को अपनाते हुए उसके चहुँमुखी विकास के लिये निर्गुण निराकार , सगुण साकार होकर गुन्गुनाता , अठ्खेलिया करता हुआ गीत गाता नाचता खिलाता खाता हुआ इस जीव को अपनी असलीयत का दान करता हुआ अपनी मधुर महिमा मे पृकट हुआ तभी तो कहते है
” अधरं मधुरं बदनं मधुरं नयनं मधुरं हसितं मधुरं.
ह्र्दयं मधुरं गमनं मधुरं मधुराधिपतेरखिलम मधुरं.
कृष्ण जन्माष्टमी पर आपने अच्छा लेख लिखा है।