राम नवमी 12 April 2011
राम नवमी 12 April 2011
हिन्दू धर्म मे शायद ही कोई ऐसा व्यक्ति होगा जो भगवान राम के नाम से परिचित न हो. मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान ने आम व्यक्ति के लिये जो आदर्श रखे है वे अलौकिक हैं और हो भी क्यों न, क्योंकि परम ब्रह्म परमेश्वर के सभी कार्य दिखने में भले ही सधारण लगें परन्तु वे होते अलौकिक ही हैं त्रेता युग में उस समय आसुरी शक्तियों का वर्चस्व बढ गया था, जन मानस में राक्षसों का भय व्याप्त था ऐसे समय में भगवान राम ने सज्जन पुरुषों की रक्षा के लिये , धर्म की स्थापना के लिये अवतार ग्रहण किया था. गीता में स्वयं भग्वान ने अपने मुख से कहा है” यदायदाहिधर्मस्य ग्लानिर्भवति भारतः. अभ्युथानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्ह्यम. परित्राणाय साधूनाम विनाशाय च दुस्कृताम. धर्म संस्थापनार्थाय सम्भवामि युगे युगे.” अर्थात जब जब भारत में धर्म की हानि तथा अधर्म का बढावा हो जाता है तब तब धर्म के अभ्युथान के लिये एवम साधु पुरुषों की रक्षा के लिये युग युग में अवतार लिया करता हूं
गोस्वामी तुलसी दास ने रामचरित मानस की रचना करके जन मानस के लिये उस परम ब्रह्म परमेश्वर से साक्षात्कार करने का सबसे आसान तरीका बताया है,राम चरित मानस की महिमा तो उत्तर भारत में ही नही वरन पूर्ण संसार में सर्व विदित है.
मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान राम का जन्म चैत्र शुक्ल नवमी के दिन मध्यान्ह में 12 बजे हुआ था उस समय सुन्दर वसन्त रितु तथा न ज्यादा गरमी न ज्यादा सर्दी ही थी, यथा राम चरित मानस में कैसा सुन्दर वर्णन है ”
नौमी तिथि मधु मास पुनीता. सुकल पच्छ अभिजित हरि प्रीता.
मध्य दिवस अति शीत न घामा . पावन काल लोक बिश्रामा,
शीतल मंद सुरभि बह बाऊ . हरषित सुर सन्तन मन चाऊ,
बन कुसुमित गिरिगन मनिआरा. स्रवहिं सकल सुर साजि बिमाना.”
एक तो राम नवमी नवरात्रों से जुडी होने के कारण अति महत्वपूर्ण है, दूसरे चैत्र मास से नवसंवत्सर की शुरुआत होती है अतः नव वर्ष के प्रथम दिन से ही देवी नवरात्रों का आरम्भ, जगह- जगह, घर- घर देवी के भजन कीर्तनों का समायोजन आदि से लगता है कि उस आद्य परम शक्ति परम ब्रह्म परमेश्वर के अवतार के आगमन का स्वागत नवरात्रों के रूप में हो रहा है. और नवां दिन राम अवतार के रूप में मनाया जाता है.
राम नवमी के पीछे पौराणिक कथा है कि जब राक्षसों ने पृथ्वी पर त्राहि त्राहि मचा रखी थी चारों तरफ पाप ही पाप फ़ैल रहा था सज्जन और साधु पुरुषों को राक्षस खा जाते थे उस समय रावण राक्षसों का अधिपति बना हुआ था. इन सभी अत्याचारों से तंग आकर पृथ्वी ब्रह्मा जी के पास गई और ब्रह्मा जी को अपनी व्यथा सुनाई. ब्रहमा जी पृथ्वी तथा सभी देवों के साथ भगवान विष्णु के पास क्षीर सागर पहुचे और भगवान को पृथ्वीवासियों की स्थिति से अवगत कराया और प्रार्थना की कि भगवन अब धरा पर धर्म का लोप हो गया है , अब समय आ गया है कि आप अवतार लेकर सबके कष्टों का हरण करें. भगवान ने सभी देवों सहित पृथ्वी को आश्वस्त किया कि मैं जल्दी ही अयोध्या में राजा दसरथ के घर अपने अंशों सहित अवतार लेकर पृथ्वी का संताप हरुंगा. उसके बाद भगवान ने राजा दशरथ के घर चारों भाइयों के रूप में अपने अंशों सहित अवतार ग्रहण किया और पृथ्वी को भार मुक्त कर दिया. तभी से चैत्र शुक्ल नवमी को राम नवमी मनाई जाती है
इस अवसर पर कुछ लोग अखन्ड रामचरितमानस का पाठ करते है, पाठ सम्पूर्ण होने पर राम जन्मोत्सव हर्षौल्लस से मनाते है मन्दिरों और घरों को सजाते हैं और मन्दिरों में भन्डारे आदि का आयोजन करते हैं.
ज्योतिःशास्त्र के अनुसार मनाने के विधि:
इस दिन भी श्री कृष्ण जन्माष्टमी की भांति प्रत्येक व्यक्ति को व्रत करना चाहिये. इसमें नवमी मध्यान्ह व्यापिनी लेनी चाहिये यदि नवमी दो दिन मध्यान्ह व्यापिनी हो या दोनों में न हो तो पहले वाली नवमी ग्रहण करनी चाहिये. इसमे अष्टमी का वेध तो निषेध नही परन्तु दशमी का वेध जरूर निषेध है. यह व्रत तीन प्रकार से किया जा सकता है 1. नित्य 2. नैमित्तिक. 3 काम्य , नित्य व्रत निष्काम भावना से आजीवन किया जा सकता है इसका फल अनन्त एवम अमिट होता है और किसी निमित्त या कामना से किया जाय तो उसे क्रमशःनैमित्तिक या काम्य व्रत की संग्या दी जाती है और उसका फल भी इच्छित मिलता है जब भगवान राम का जन्म हुआ था तव चैत्र शुक्ल नवमी , गुरुवार, पुष्य नक्षत्र मध्यान्ह तथा कर्क लग्न था ., ये सभी संयोग सदैव नही मिल सकते. अतः अगर इनमे से अधिकतर संयोग मिलते हों तो उनको ही व्रत के समय ग्रहण करना चाहिये. सवसे महत्व पूर्ण बात है भक्ति औए बिस्वास की.
व्रत करने वाले को व्रत के एक दिन पहले ( अष्टमी के दिन ) प्रातः स्नानादि से निश्चित होकर भगवान रामचन्द्र का स्मरण करना चाहिये , दूसरे दिन चैत्र शुक्ल नवमी को ( इस वर्ष 12 अप्रैल दिन मंगल वार) नित्य कृत्य से अति शीघ्र निवॄत होकर निम्न मन्त्र द्वारा भगवान राम के प्रति व्रत करने की भावना प्रकट करनी चाहिये. मन्त्र:- ओम उपोष्य नवमी त्वद्य्यामेष्व्ष्ट्सु राघव. तेन प्रीतो भव त्वं भो संसारात त्राहि मां हरे.” और अगर कामना रख कर व्रत किया जा रहा है तो अपनी कामना सहित संकल्प करे, काम क्रोध और लोभ को छोड कर व्रत करे , अपने घर, मन्दिर आदि को ध्वजा , तोरण आदि से सजाये, फिर पूजा के स्थान मे सर्वतोभद्रमंडल की रचना करके उसके बीच मे कलश स्थापना करे. कलश के उपर राम पंचायतन का चित्र ( राम पंचायतन :- बीच मे भगवान राम और सीता जी बैठे हुये , अगल बगल में भरत और शत्रुधन खडॆ हुये तथा नीचे हनुमान जी वीरासन में बैठे हुये हो , को कह्ते है) या उसकी सुवर्ण मूर्ति स्थापित करके उनका आवाहन आदि से पंचोपचार या षोडशोपचार से पूजन करे . पूजनोपरान्त हवन करे और पूरे दिन भगवान रामचन्द्र जी के भजन कीर्तन , गुण और चरित्रों का कथन करते हुये रात्रि जागरण करे. तदोपरान्त दूसरे दिन दशमी के दिन व्रत का पारण करके विसर्जन करे, फिर प्रसाद ग्रहण तथा ब्राहमणों को भोजन और दान दें और इस प्रकार प्रति वर्ष करता रहे ऐसा करने से उस भक्त विशेष पर ईश्वर की विषेश कृपा वरसती है और वह इस संसार में धर्म , अर्थ, काम प्राप्त करके अंत मे मोक्ष प्राप्त करता है इसमे संदेह नही है.
अतः प्रत्येक नर और नारी को राम नवमी का व्रत प्रयत्नपूर्वक करके सकल कामनाओं की पूर्ति सहज में ही कर लेनी चाहिये .